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सुखरात मँ आतिशबाजी सँ निजात | Angika Samvad - Abree Dafi | by Kundan Amitabh

सुखरात मँ आतिशबाजी सँ निजात

अंगिका संवाद : अबरी दाफी | कुंदन अमिताभ

हर साल जबॆ सुखरात (दिवाली) आबै वाला रहै छै आरू आबी कॆ चल्लॊ जाय छै, इ मुद्दा चरम चर्चा मॆ रहै छै कि आतिशबाजी आरू आतिशबाजी जनित प्रदूषण सॆं केना निजात पैलॊ जाय. तरह-तरह के तर्क-वितर्क, तरह-तरह के बयानबाजी, तरह-तरह के पाबंदी के दौर चलै छै. तमाम तरह के विनम्र आग्रह भी करलॊ जाय छै. शुरू मॆ एन्हॊ प्रतीत होय छै कि शायद अबरी दाफी आतिशबाजी नियंत्रण मॆं रहतै. एन्हॊ भी अनुमान लगै छै कि बढ़तॆं मँहगाई के चलतॆं एकरा पर कुछू लगाम लगतै. धीर मॊन अधीर होय जाय छै जबॆ सब चीज कॆ धता बतलैतॆं छोटी दिवाली के रात सॆं ही आतिशबाजी केरॊ अंतहीन सॆं नजर आबै वाला दौर शुरू होय जाय छै. करोङॊं रूपया आगिन मॆं झोंकी देलॊ जाय छै. भारतीय क्रिकेट टीमॊ द्वारा विभिन्न अन्तराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, आय.पी. एल. मैच जीतला पर आतिशबाजी केरॊ प्रदर्शन तॆं होतै छै,  पर दिवाली मॆं आतिशबाजी आपनॊ चरम पर रहै छै.
aatishbaji_2013

एकरा सॆं कि इ  बात  साफ होय  छै कि आतिशबाजी आरो आतिशबाजी जनित वायु तथा ध्वनि प्रदूषण के रोकथाम लेली सामाजिक आरू सरकारी स्तर पर होय रहलॊ प्रयास  के प्रति जनमानस कुछ खास संवेदनशील नै छै ?  मतलब जनमानस पर्यावरण के सुरक्षा के प्रति जागरूक नै छै ? या कि जागरूक रहतॆं हुऎ भी दिवाली केरॊ उत्सव कॆ समर्पित आरू   श्रद्धा  भाव सॆं मनाबै के मजबूर मानसिकतावश आतिशबाजी लेली विवश होय जाय छै ?

धन अपव्य्य आरू प्रचुर वायु तथा ध्वनि प्रदूषण के अलावा आतिशबाजी मानव स्वास्थय पर काफी गंभीर प्रभाव छोङै छै. सुप्रीम कोर्ट के सख्त हिदायत छै कि आतिशबाजी  केरॊ तीव्रता 125 डेसीबल ताँय सीमित राखलॊ जाय, पर खुला उल्लंघन बदस्तूर जारी रहै छै. आखिर की वजह छै कि पर्यावरण के सुरक्षा के प्रति जागरूक रहते हुऎ भी जनमानस दिवाली ऐतॆं-ऐतॆं आतिशबाजी लेली मजबूर होय जाय छै. कि सामान्यत: समाज केरॊ धनाढ्य वर्ग जेकरॊ एकरा मॆ जादे योगदान छै आरू जिनका लेली आतिशबाजी एगॊ स्टेटस सिंबल बनी चुकलॊ छै, ही एकरा लेली मुख्यरूपेण जिम्मेवार छै? आखिर  कैन्हॆं दीपावली आज पटाखावली बनी कॆ रही गेलॊ छै ? आखिर जागरूकता अभियान केरॊ विफलता  के की वजह छै? तह मॆ जाना जरूरी नै छै ?

आतिशबाजी सॆं जुङलॊ सख्त कानून केरॊ अभाव, पारंपरिक पटाखा केरॊ पर्याय पर्यावरण-अनुकूल पटाखा केरॊ घोर अनुपलब्थता आरॊ अपर्याप्त सरकारी संरक्षण तथा अपर्याप्त प्रचार-प्रसार,  अपर्याप्त योजनाबद्ध जागरूकता अभियान आदि ऐन्हॊ अनेक वजह छै जेकरा चलतॆं  जनमानस चाही करी कॆ भी पारंपरिक पटाखा के त्याग नै करॆ पाबी रहलॊ छै.

सबसॆं महत्वपूर्ण छै सही तथ्य कॆ जानना, ओकरा  मानना, आरू मानी करी कॆ सही दिशा कॆ अख्तियार करना. जरूरत छै पारंपरिक पटाखा केरॊ पर्याय पर्यावरण-अनुकूल पटाखा कॆ अपनाबै के. पारंपरिक पटाखा  के विपरीत पर्यावरण-अनुकूल  पटाखा कोय धुँआ या आग नै निकालै छै. पर्यावरण-अनुकूल  पटाखा , वैक्यूम कम्बशन टेकनीक आधारित होय छै, जेकरा सॆं कोय धुँआ या आग नै निकलै छै आरू इ लेली सॆं इ एगॊ छोटॊ बच्चा लेली भी सुरक्षित छै. वैक्यूम कम्बशन टेकनीक आधारित पर्यावरण-अनुकूल  पटाखा कॆ घर के अन्दर भी छोङलॊ जाबॆ सकॆ छै कैन्हॆ कि एकरा सॆं निकलै छै खाली आवाज आरॊ रंग-बिरंगा कागजॊ के टुकङा. एकरॊ दाम भी पारंपरिक पटाखा सॆं बहुत कम रहै छै.

कि पश्चिम देश ऐन्हॊ यहाँ भी  जब तलक आतिशबाजी संबंधी कानून सख्त  नै बनी जाय छै, आरू सख्ती सॆं लागू नै होय जाय छै, आतिशबाजी पर लगाम लगाना नामुमकिन छै? दीपावली पर्व छेकै मधुर शब्द आरू भावना कॆ मिठाई जैन्हॊ लोगॊ मॆं बांटें के जेकरा सॆं राग आरू द्वेष  जीवन सॆं पटाखा जैन्हॊ बिलाय जाय. दीपावली अवसर छेकै पुरानॊ गलतफहमियॊ कॆ भूली करी मिलीकॆ उत्सव मनाबै के. अपना कॆ अनुसरण करना छै ऐन्हे परिपाटी कॆ जेकरा सॆं पटाखा के चलतॆं इ धरती आरू जीवन बिलाबै सॆं बचलॊ रहॆ. आबॊ ज्ञान और प्रज्ञा केरॊ दीप जलैलॊ जाय. दिवाली के उत्सव मनैलॊ जाय आरू जीवन कॆ उत्सव बनैलॊ जाय.  आबॊ प्रण लॆ शान्ति फैलाबै के, लोगों कॆ प्रेम आरू उत्साह मॆं जोड़ै के आरू समृद्धि लानॆ के. आबॊ पर्यावरण-अनुकूल पटाखा  अपनाय कॆ   दीपावली पर्व कॆ पर्यावरण सुरक्षा के महापर्व के रूपॊ मॆं मनाना शुरू करै के दिशा मॆं एगॊ डेग भरलॊ जाय.

कुंदन अमिताभ

Email : kundan.amitabh@angika.com

Mob. : 09869478444

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