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लुप्त होने को हैं बिहार- झारखंड की सात भाषाएं

पटना: बिहार- झारखंड की सात भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं. इनमें सोनारी, कैथी लिपि, कुरमाली, भूमिज, पहाड़िया, बिरजिया व बिरहोर शामिल हैं. खुलासा
भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण (पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया) के बिहार और झारखंड में किये गये सर्वेक्षण में हुआ है. पीएलएसआइ की अध्यक्ष डॉ जीएन
देवी ने कहा कि पुस्तक के प्रकाशक ओरियंट ब्लैकस्वॉन हैं. इसमें 65 विद्वानों ने सहयोग किया है. जिसमें शिक्षाविद से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार
भी शामिल हैं. 2060 के बाद अंगरेजी पर हिंदी भारी पड़ेगी.

सोनारी भाषियों की संख्या हो गयी कम : पीएलएसआइ की अध्यक्ष डॉ जीएन देवी ने बताया कि वर्तमान में बिहार में भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका,
वज्जिका, सूरजापूरी, संथाली व थारु भाषा बोले जा रहे हैं. सर्वेक्षण में पता चला है कि सोनारी भाषा बोलने वालों की संख्या कम हो गयी है. सोनारी भाषा कोडेड
होती है. जो सोनार ही समझते हैं.

सूरजापूरी भाषा पूर्णियां व किशनगंज में बोली जा रही है. नेपाल की सीमावर्ती क्षेत्र में नेपाली भाषा भी बोली जाती है. जबकि झारखंड में अंगिका, असुर, बिरजिया,
बिरहोर, कुरमाली, हो, कुड़ुख, पंचपरगनिया, खड़िया, खोरठा, मुंडारी, मालपहाड़िया, नागपुरिया, गोमधी, सबर व संथाली भाषा बोली जा रही है. इसमें से कुछ भाषा
ऐसी है, जिसके बारे में लोगों ने सुना तक नहीं है. मालपहाड़िया भाषा खास कर गोड्डा, पाकुड़ व साहेबगंज में बोली जाती है.

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