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मनोरंजन उद्योग मँ रोजगार लेली 'अंगिका' मँ अपार संभावना | Angika Samvad | Kundan Amitabh

अंगिका केरौ पहलौ टेली फिल्म, 'आदमी आरू औरत' क ल क एकरा देखै वाला अंगिका भाषी सिनी के भावुक, रोमांचकारी आरू उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया ऐलौ छै । जेकरा सँ पता चलै छै कि लोगें सिनी आपनौ अंगिका भाषा आरू अंग भूमि के माटी सँ केतना गहराई तलक जुड़लौ छै । ई अलग बात छै कि परिस्थितिवश बहुत्ते क ई सौभाग्य प्राप्त नै होय छै कि आजीवन आपनौ भाषा आरू संस्कृति के गोद मँ इठलैतें रहै । साथ ही एकरा सँ ई भी पता चलै छै कि मनोरंजन के क्षेत्र मँ रोजगार पैदा करै लेली अंगिका भाषा मँ अपार संभावना छै ।

एक सप्ताह पहनै अंगिका भाषा के न्यूज व साहित्यिक वेब पोर्टल 'अंगिका.कॉम' पर आरू पूर्णतः अंगिका भाषा के विकास ल समर्पित फेसबुक प्रोफाईल 'अंगिका संवाद' प 'आदमी आरू औरत' टेली फिल्म के लिंक शेयर करलौ गेलौ रहै । जेकरा अंगिका भाषी सिनी नँ काफी पसंद करलकै । एकरा मँ जे प्रतिक्रिया ऐलौ छै वू भाव विभोर करी दै वाला छै ।

सुंदरवती महिला कॉलेज, भागलपुर सँ पढ़ाई करी क फिलहाल बिलासपुर, छत्तीसगढ़ मँ रही रहलौ आरू प्राणी-विज्ञान केरौ प्राध्यापक के रूप मँ कार्यरत अर्पणा अंजन जी लिखै छै, "हम्में ई सिनेमा आधो देखलै छियै । पड़ोसी के टी वी के आवाज सुनी क दौड़ी क घोऱ आबी क टी वी चालू करलै रहियै, सब्भे क जोरौ - जोरौ सँ हाँक पारी क बोलैलै रहियै ... जोरौ सँ बोलै के कारण बकबो सुनलै छेलियै .... खूब अच्छा सँ याद छै ।आय फेनू वहै रं उत्साह मनौ मँ घुमड़ी रहलौ छै .... माय के बोली‌ होथैं छै मिट्ठौ - मिट्ठौ ।"

दुमका निवासी प्रसिद्ध पुरातत्वविद् पंडित अनूप कुमार बाजपेयी जी लिखै छै, "सौभाग्य सँ ई सिनेमा केरौ, दूरदर्शन प हम्में पहलौ दर्शक छेकिऐ। जोन दिना पहलौ बार दूरदर्शन पर देखैलौ गेलौ रहै, हमरा देखै के अवसर मिललौ रहै।"

अंगिका व हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार, डॉ. अमरेन्द्र जी नँ ई अंगिका टेलि फिल्म केरौ निर्देशक के बारे मँ बतैतें हुऐ लिखलै छै कि तपन सिन्हा भागलपुर सँ बहुत अच्छा सँ परिचित छेलै आरू भागलपुर सँ ल क बौंसी तांय हुनको खिस्सा पसरलौ छै ।

जबकि तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय सँ अंग्रेजी साहित्य मँ डिग्री हासिल करी क भागलपुर मँ ही कार्यरत समाजसेवी,   राजीव बनर्जी जी ई फिल्म के बारे मँ जानकारी बढ़ैतें लिखै छै, "हेकरा म भागलपुरौ रो एगो कलाकार अमरेन्द्र पाठक नँ भी अभिनय करलै छेलै। हुनी अभियो आदमपुरौ मँ भारत गैस के सटले वाला गल्ली मँ रहै छै।"

अंगिका साहित्यकार, चन्द्रप्रकाश जगप्रिय जी, अंजनी कुमार सुमन जी नँ भी लिखलै छै कि ई अंगिका टेलि फिल्म बहुत सुंदर छै । एकरो अलावे ई टेलीफिल्म क ल क उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया व्यक्त करै वाला आरू गहरौ रूचि देखाबै वाला सिनी मँ शामिल छै - जयंत जलद, शुभम पांडेय, अंशुमाला झा, ब्रह्मदेव कुमार, राकेश कुमार, राघवेन्द्र सिंह, मनीष दीपंकर, देवेन्द्र सौरभ, राकेश रंजन, सौरभ कुमार, ओमप्रकाश सांबे, भोला कुमार बाघबानी, सुजाता कुमारी, त्रिलोकीनाथ दिवाकर, शशिधर मेहता, सूरज कुमार, श्वेता भारती, मधुमिलन नायक, अनिमेश वत्स, संजू कुमार, कुशराज कुमार, अशोक कुमार शर्मा, रंजीत कुमार, त्रिलोकीनाथ दिवाकर, तुषार कांत, अंजनी कुमार शर्मा, मिथिलेश सिंह, चिंटू कुमार, रितुराज कश्यप, दीपक राव, भारतेन्दु आनंद, प्रशांत सिन्हा आरनि ।

लगभग एक घंटा के अंगिका भाषा केरौ ई पहलौ टेली फिल्म 'आदमी आरू औरत' 1984 ई. मँ दूरदर्शन चैनल प रिलीज होलौ रहै । अमोल पालेकर आरू महुआ रायचौधरी मुख्य भूमिका मँ छै । निर्देशक - तपन सिन्हा, कथाकार - प्रफुल्ल राय केरौ ई अंगिका सिनेमा, इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया -2007 मँ भी देखैलौ गेलौ रहै । ई फिल्म क बेस्ट फीचर फिल्म ऑन नेशनल इंटिग्रेशन कटेगरी मँ नरगिस दत्त अवार्ड भी मिली चुकलौ छै ।

बहरहाल, बिना कोय गीत-संगीत वाला ई अंगिका फिल्म क जोन उत्साह सँ लोगें नँ पसंद करनै छै आरू एकरौ प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करलै छै, ओकरा सँ एक बात फेरू सँ सिद्ध होय छै कि अंगिका भाषा मँ जों मुद्दा आधारित फिल्म बनैलौ जाय त एकरौ सफल होय के प्रबल संभावना छै । एकरा सँ एक डेग आगू एकरा मँ अंगिका भाषा-भाषी लेली रोजगार के प्रबल संभावना भी नजर आबै छै । जे कि अंततः अंगिका भाषा आरू अंग संस्कृति के संरक्षण आरू विकास के दुआर खोलै के ताकत रखै छै ।

बेशक अंग क्षेत्र मँ रोजगार के अवसर बढ़ाबै लेली अंगिका भाषा मँ फिल्म निर्माण बहुत बड़ौ जरिया हुअय सकै छै । एकरा लेली जरूरी छै कि अंग क्षेत्र मँ अच्छा रकम के फिल्म सिटी के स्थापना करलौ जाय । जेकरा सँ कि अंगिका के साथ-साथ, हिन्दी, बंगाली, संथाली, आरनि  भाषा मँ फिल्म निर्माण भी संभव हुअय सकै । एकरौ अलावे साथें-साथें सरकार तर्फो सँ यहाँ "फिल्म एंड टीवी इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया" केरौ शाखा भी खुलना चाहिय्यौ । जे कि अखनी खाली पूना मँ ही छै ।


मनोरंजन उद्योग मँ रोजगार लेली 'अंग-अंगिका' मँ अपार संभावना के मद्देनजर ही हाल मँ अखिल भारतीय अंग-अंगिका विकास मंच द्वारा केंद्र आरू राज्य सरकारौ सँ ई ऐतिहासिक क्षेत्र मँ एगो फिल्म सिटी स्थापित करै के आग्रह करलौ गेलौ छै, जे आरू लोगौ लेली रोजगार के अवसर पैदा करतें हुअय प्रवासियो सिनी क अपनौ आजीविका कमाबै मँ मददगार साबित हुअय सकतै । एकरौ अलावे सरकारों सँ ई भी आग्रह करलौ गेलौ छै कि फिल्म आरू टेलीविजन संस्थान के एक शाखा भी 'अंग' क्षेत्र मँ स्थापित करलौ जाय। सरकार जतना जल्दी ई सब क यथार्थ रूप प्रदान करतै जनता के ओतने जल्दी भल्लौ होतै ।

हिन्नें लाखों प्रवासी लॉकडाउन के बीच दोसरो राज्यो सँ अंग क्षेत्र वापस लौटी ऐलौ छै । जेकरा मँ बहुत्ते अपनौ मूल स्थान प ही रोजगार के तलाश करी रहलौ छै । फिल्म सिटी स्थापित करला सँ हर वर्ग क रोजगार मिलै सकै छै। अंग क्षेत्र मँ फिल्म उद्योग लेली बहुत्ते गुंजाइश छै। ई क्षेत्र में फिल्म सिटी के स्थापना काफी प्रभावी हुऐ सकै छै, कैन्हें कि हर वर्ग क कोनो न कोनो रूपो मँ रोजगार मिलै सकै छै। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार के साथ-साथ फिल्म सिटी के आसपास के बहुत्ते लोग भी स्वरोजगार के माध्यम सँ अपनौ आजीविका कमाबै सकै छै ।अखनकौ समय मँ, 'अंग' क्षेत्र मँ फिल्म सिटी के स्थापना महाराष्ट्र, गुजरात आरू दोसरौ राज्यो सँ बड़ी भारी संख्या मँ लौटलौ प्रवासी कामगारौ लेली संजीवनी साबित हुअय सकै छै।

भारत मँ एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री यानि मनोरंजन उद्योग नँ चालीस लाख सँ जादे लोगौ लेली रोजगार के संभावना पैदा करलै छै। अंग क्षेत्र के विकास लेली जरूरी छै कि प्रौद्योगिकी आधारित सर्वश्रेष्ठ मनोरंजन उद्योग विकसित करलौ जाय । दुनिया मँ उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ तकनीक क अपनाय क ऐसनौ ढाँचा तैयार करलौ जाय जेकरा मँ अंग देश केरौ मानवीय संसाधन के समुचित समायोजन करलौ जाबै सकै । जेकरा सँ कि पलायन रोकी क स्थानीय स्तर पर ही जीविका केरौ हर आवश्यकता पूरा करै के असीमित संभावना क धरातल प उतारलौ जाबै सकै ।

वर्तमान मँ भारत मँ, मुंबई मँ 60% सँ अधिक भारतीय चल-चित्र, टेलीविजन धारावाहिक आरू विज्ञापनौ के निर्माण करलौ जाय छै । बचलौ-खुचलौ काम हैदराबाद, कोलकता, आरू चेन्नई मँ होय छै । एगो फिल्म सिटी के परिसर मँ मंदिर, जेल, अदालत, झील,गार्डन, पहाड़, फव्वारा, मैदान, गाँव, पिकनिक स्पॉट, बगीचा, थिएटर, आरू यहां तलक ​​कि मानव निर्मित झरना सहित शूटिंग लेली सब्भे प्रकार के जग्घौ उपलब्ध रहै छै।साथें-साथ एकरा मँ फिल्म के विकास आरू उत्पादन लेली आवश्यक सब प्रकार के मूलभूत संरचना भी बनलौ रहै छै। भारत मँ फिल्म-निर्माण सँ जुड़लौ केंद्र आरू गतिविधि केरौ विकेंद्रीकरण के जरूरत छै ।


फिल्म सिटी जैसनौ एकीकृत फिल्म स्टूडियो कॉम्प्लेक्स क महानगर मँ बनैला के बजाय 'अंग' क्षेत्र जैसनौ सूदूर जग्घौ प बनाना जादै आसान आरू सस्ता छै। एकरा सँ स्थानीय स्तर के कलाकार सिनी के उभरै के संभावना भी रहतै । सथें स्थानीय भाषा आरू संस्कृति के विकास क भी गति मिलतै । सस्ता संसाधन के उपयोग सँ सस्ता फिल्म बनाय क लोगौ द्वारा जादे लाभ कमैलो जाबै सकै छै । एकरा सँ क्षेत्र केरौ समुचित विकास भी सुनिश्चित करलौ जाबै सकै छै ।
 
English Version of the Article in Angika Language

'Angika' has immense potential of employment in entertainment industry

Angika's first tele-film, 'Man and Woman', has received a passionate, thrilling and encouraging response from Angika speakers who watched the film. It shows how deeply people are connected with their Angika language and Anga land. It is a different matter that many people do not have the privilege of circumstance to sit in the lap of their language and culture for a lifetime. Also, it shows that Angika language has immense potential for generating employment in the field of entertainment.

A week ago, the link of 'Man and woman' tele film was shared on Angika language news and literary web portal 'Angika.com' and on Facebook profile 'Angika Samvad' dedicated solely for the development of Angika language . Which has been well liked by Angika language speakers. The reactions that have received are emotional and enlightening.

Arpana Anjan, working as a professor of zoology, currently living in Bilaspur, Chhattisgarh, after studying at Sundarwati Women's College, Bhagalpur, writes, "I have seen half of this cinema years ago. Hearing the Angika through neighbor's running TV,  I had come back home, and had switched on my TV. I had called everyone with a loud voice. My mother had scolded me for speaking loudly. I can recall the same very well. Today in the same way the enthusiasm of my heart is swirling in my mind, mother's speech is alway sweetest.

Renowned archaeologist Pandit Anoop Kumar Bajpayee, a resident of Dumka, writes, "Luckily I am among the first viewers of this cinema, on Doordarshan. The day it was first screened on Doordarshan, I had the opportunity to watch it."

Dr. Amarendra, senior litterateur of Angika and Hindi, has written about the director of this Angika Tele film, that Tapan Sinha was very well acquainted with Bhagalpur and everyone knows him from Bhagalpur to Bounsi.
 
While Rajiv Banerjee, working as a social activist in Bhagalpur after obtaining a degree in English Literature from Tilakamanjhi Bhagalpur University, writes about the film, "Amarendra Pathak, an actor from Bhagalpur has also acted in this film. He still lives in the street next to 'Bharat Gas' in Adampur. "
 
Angika litterateur, Chandraprakash Jagapriya, Anjani Kumar Suman also wrote that this Angika Telefilm is very nice. Apart from these, those who reacted enthusiastically to this tele film and showed keen interest towards it include - Jayant Jalad, Shubham Pandey, Anshumala Jha, Brahmadev Kumar, Rakesh Kumar, Raghavendra Singh, Manish Dipankar, Devendra Saurabh, Rakesh Ranjan, Saurabh Kumar, Omprakash Sambe, Bhola Kumar Baghbani, Sujata Kumari, Trilokinath Diwakar, Shashidhar Mehta, Suraj Kumar, Shweta Bharti, Madhumilan Nayak, Animesh Vats, Sanju Kumar, Kushraj Kumar, Ashok Kumar Sharma, Ranjit Kumar, Trilokinath Diwakar, Tusshar Kant, Anjani Kumar Sharma, Mithilesh Singh, Chintu Kumar, Rituraj Kashyap, Deepak Rao, Bhartendu Anand, Prashant Sinha and others.
 
This first tele film of Angika language, 'Man aur Aurat' of about one hour duration was first released on Doordarshan - National channel in 1984 AD. Amol Palekar and Mahua Raychaudhuri have played the lead roles. Director - Tapan Sinha, and narrator - Prafulla Rai's Angika Cinema, Admi Aur Aurat was also screened at the International Film Festival of India-2007. The film has also received the Nargis Dutt Award for the Best Feature Film on National Integration category.

However, the enthusiasm with which people have liked and reacted positively to this Angika film without lyrics and music proves one thing that if an issue based film is made in Angika language then it will succeed, the likelihood of this is strong. A step further, it also shows a strong possibility of employment for Angika-speaking people in it. Which ultimately has the power to open the doors for the preservation and development of Angika language and Anga culture.

Of course filmmaking in Angika language can be a great means to increase employment opportunities in Anga  provided a good Film City is established in the Anga region. So that, along with Angika, it could be possible to produce films in Hindi, Bengali, Santhali, etc. languages. Apart from this, a branch of "Film and TV Institute of India" should also be opened by the government here. Which is currently only in Poona.

In view of the immense potential of 'Angika' for employment in the entertainment industry, the All India Anga Angika Vikas Manch (AIAAVM) has urged the central and state governments to establish a Film City in this historical region to help migrants earn their livelihood while generating employment opportunities for several others. Besides the governments have been urged to establish a branch of Film & Television Institute of India too in to the 'Anga' region. The sooner the government realizes all this, the better will be the benefit of the public.
 
As thousands of migrants has returned to Anga region from other states amid the lockdown, many are seeking employment in their native place. Setting up a Film City can provide employment to every section. There is a lot of scope for the film industry in Anga region. The establishment of a Film City in this area can be quite effective, as every section can get employment in one form or the other, direct or indirect as well as many people around Film City can also earn their livelihood through self-employment. Amid present times, the establishment of Film City in 'Anga' region will be like ''Sanjeevani'' for migrant labourers who returned in big numbers from Maharashtra, Gujarat and other states.
 
The Entertainment industry has created employment potential for over four millions people.  For the development of 'Anga' region, it is necessary to develop the best technology based entertainment industry. By adopting the best technology available in the world, such a framework can be prepared in which the human resource of Ang Pradesh can be adjusted appropriately for the employment. So that by stopping the migration, the unlimited possibility of fulfilling every need of livelihood at the local level can be brought down to the ground.
 
At present within India, over 60% of Indian motion pictures, television serials and commercials are produced in Mumbai. Rest of the work is accomplished at Hyderabad, Kolkata Chennai and at another such location which has film city for production of films. All types of places are available for shooting in the premises of a film city, including temples, jails, courts, lakes, gardens, mountains, fountains, grounds, villages, picnic spots, gardens, theaters, and even man-made waterfalls. Along with this, all the basic infrastructures required for the development and production of the film are also available there. There is a need for decentralization of such film-making centers and activities in India.

It is easier and cheaper to build an integrated film studio complex like Film City in a remote place like the 'Anga' area than in the metropolis. This will also create the possibility for local level artists to emerge. At the same time, the promotion and development of local language and culture will also gain momentum. People can earn more profit by making cheap budget movies by using cheap resources. In this way proper development of the area can also be ensured.


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